भोंपूवाली और तीनहजारी

 कृष्णा कैंटीन में पूरे तीन दिन बाद दिखाई दिया था उसे देखते ही एक बाब ने आवाज लगाई...भो कृष्णा ! इधर तो बा ! नदारद था रे.. जी साहिब! कहता कृष्णा पास आ रूका। बाबू ने पूछा दो-तीन दिन से कहाँ हम बरातिये गये थे साहिब। ऐ झूठ बोलता है, हम बताइत रहे साहिब, यह चाँदपुर गया था, एक और छोकरे ने बीच ही बात में काटी। नहीं साहिब । हम दोस्त की सादी में गये थे कटिहारशादी में गया था, तूने भोंपू नहीं बजाया...भोंपू सुनकर इर्द-गिर्द जमा लोगों के बीच हँसी की लहर दौड़ गई, कृष्णा झेंप गया। ये भोंपूवाला किस्सा क्या है, तुम लोग इस बेचारे को रोज ही छेड़ते हो... हमें भी तो सुनाओ एक नये आये बाबू ने पूछा। ये तो कृष्णा ही सुनायेगा। हाँ तो कुष्णा इनको भी सुना दे... सुना तो दिये थे साहिब...कल ही तो सुनाये थे... तो फिर आज भी सुना दे-कैंटीन के मालिक ने ऊंची आवाज में कहा। वह जानता था कि बाबू लोंगों का यह खेल आधे-पौने घटे तक चलता है तो नई-नई फरमाईश होती हैं विक्री बढ़ती है। मालिक की आवाज सुनकर कृष्णा किस्सा सुनाने खड़ा हो गया । गला खंखार कर बोला...हम तो दुकानिये पर बैठे थे साहिब ! एक ठो छोकरा आया, बोला-कृष्णा तुम्हार भावजी आई हैं। अरे धत्त ! हमार भाय कोई सादी नाहीं बनाय हैं। भावजी कहाँ से आयेंगी, हमने कहा, वह छोकरा हँसकर बोला...धरै जाव, देखो तुम्हार भावजी.. हम भी साहिब, दुकानिय को ताला दिये और घर भागे। ऑगन में भीड़ लगी थी, बापू डंडा हाथ में लिये सामने खड़ा था, भायदूसरी तरफ था, भावजी तो दिखाई ही नहीं दे रही थीहम चपचाप भाई के पास गये, पूछा...भाय ! भावजी है क्या...हाँ! भीतरे गइल ! तुम जाइके उसे संभालो। बापू तो हमका अंदर बढन नहीं देता। इतने में बापू गरजा...रामू तुम बिना पूछे सादी बना दिये, न दान-न दहेज ये कोनो तरीका भइल .. बापू ! हमका छिमा करो। वो मजाक ही मजाक में बात बन गइल तो हम का करिबे बापू ! हूँ! तुम सोचे, तुम्हार बाप, भाई कोने कुछ नाहीं है.. तुम लाट साहिब हो गये राम! इतने में सरजू दादा आगे बढ़...ई. इतना हल्ला-गुल्ला करने की बात क्या है, मलूका सादी ही बनाय के आया है, कौनो चोरी-चकारी तो नाहीं किये ना... तुम ही बताओ दादा ! अब हम ब्याह करिके आये तो बापू इतना रोस काहे करे। मलूका ! अब छोड़ भी इस किस्से को...बहू को इज्जत दे। बहू कहाँ है ! सरजू दादा ने बापू को समझाया।


- हमार दिमाग कमती सही, काका पर हम जानित हैं, बहू कौने तमासा नाही, वो अंदर छ, तो बापू ! हमका भी अंदर बढ़न दो ना, वो बेचारी नई जगा पे... अरे हे रामू ! जास्ती बकर-बकर करेगा तो लठ घुमाइ के मूडी तोड़ देंगे। वापू गरजा तो भाय डर के मारे सरजू दादा के पीछे दुबक गया, और हम मौका पाइके अंदर बढ़ गयेअंदर कोठरी के कोने में गठरी सी बनी बैठी थी वह, गऊ सी लड़की जास्ती उमर होगी तो पन्दरा-सोलह। लाल घाघरा, विदी, टिकुली हम झुक के मुह देखा... सुदर भावजी। हम प्रणाम किये । भावजी हँसी लला। बाहिर अभी हल्ला हो रही कामामला हो तो रहा है भावजी । पर फिकर ना करो, तुमका बापू कुछ नाहीं बोलेगाऔर तुम्हार भाय जी। वो भी बापू के मनाइ के अंदर आ जायेगा, पर भावजी, बड़ा जालिम निकला भाय, तुमको उड़ा लाया, तुम कैसे फंस गई निखट्र के पल्ले । लला ! तुम क्या तीसमार खाँ हो, आने दो उनकों अभै कान खिचवाऊंगीअरे नाहीं भावजी ! हम तो ठट्ठा किये हैं। थोड़ी देर बाद उठकर हम बाहर गये, बापू दान-दहेज की रट लगा रहा था, ने जेब से पांच हजार की नकदी बापू के थमा दी, तो बापू चुप करके कहीं गया, भीड़ छंट गई भाय अंदर आ गया, अंदर आते ही बोला.. कृष्णा! कैसी लगी भोजी! सुदर है भाय ! पर तुम सादी कैसे बना दियेबरात भोंपू बजाने गया था हीरा भाय की सादी में, बैंड-बाजे, फोनोगराम वाली - देखके गाँव में बड़ा रोब-दाब पड़ गया, अभी खा-पीके हम बैठे गाना-बजाना करने लगे, हमने गीत लगाया...ले जायेंगे...ले जायेंगे...दिल वाले दुल्हनियाँ ले ..


कि कुछ छोकरियाँ हमार धोरे आ गई, ई तुम्हार भौजी तो बोली...वो रिका नाही का...राजा की आयेगी बरात, रंगीली होगी रात... है काहे नाहीं, हम लगा देंगे, पर एक शरत है...तुम लोग नाचोगी। थोड़ी देर या चुप रहीं फिर नाचने लगीं, गीत खत्म हआ तो हमार दोस्त लोग चिल्लाये... र ले जायेंगे वाला गाना लगाओ गीत लगते ही सब छोकरे लोग फिर नाचने रामू ते में ये आई, रिकाड पर हाथ धरके, रिकाड रोक लिये बोली भोंपू वाले .. बात फिर से लगा दे ना...इनका हाथ हटाने को हम हाथ पकड़ के बोले.. फोनोगराम का बड़ा सौक है तो चलो पूणिया, इहाँ चांदपुर के गाँव में कौने बाजा नाहीं वा हम तो मजाक कर रहे थे कि छोकरा लोग चिल्लाये . अरे वाह रामू । हाथ लिये, मरजाद है तो हाथ छोड़ना नाहीं। नाहीं छोड़गे। इतना सुनते ही ये बानी हत् । बिना सादी बनाय जायेंगे हम।प्रत् ! सादी के बिना कौन कही, मण्डप सजा है, बाराती हैं, अब ही फेरे । अभी हँसी-मजाक चल ही रहा था, कि इसका पहलवाननुमा भाई गरजा-बहुत की हवा लगी दीखे है। गवई-गाव की छोरी समझ के हाथ पकड़ लिये। हिम्मत नोबियाह के ले जाव, नाहीं तो ई हाथ तोड़के दूसरे हाथ में पकड़ा देंगे। ये तो हाथ हा कर भागी और लौटी तो माँ-बाप दोनों को साथ लिवा लाई। अब तो बात गले पड़ गई, बड़े-बूढ़ों ने बीच-बचाव किया, और बात त हो गई कि पडली ओड़ी का ब्याह हो जाय तो इसके भी फेरे लगा देंगे, बाप ने तो कुल खानदान सेनामी-पेशा तक की पूछ लई, हम भी अकड़ के बोल दिये ... पूर्णिया में बैंड-बाजा मान है, भाई-बाप सबै है, कौने हम कम नाहीं, भूम्यार जात के हैं, चाहो तोबरातियों से पूछ-गछ करलो। शहर का नाम सुनके तो इनके मुह में पानी आ गया। फिर तू ही बता-मण्डप वहाँ, बाजा वहाँ, बराती वहाँ देर किस बात की...हमने तो इनकी पसद का रिकार्ड और जोर-सोर के लगा दिया, चटपट हमारे ससूर ने व्याह की तैयारी की, गांव के हाट-बाजार से कपड़ा लत्ता लिया पच्चीस बर्तन लिये, वहीं, उसी चौंक में एक दिन का भोज-भात किया, और हो गया व्याहपांच हजार भी नकद दिये कृष्णा, वो हम बाबू के दे दिये। अच्छा तो तुम भोंपू बजा के भावजी ले आये। हाँ भाई !


हम तो बन गये भोंपू वाले और ये भई भोंपू वालीं। भावजी ! तो तुम भोंपू के ब्याही हो सुनकर भाभी ही ऽ ही 5 कर हँस दी, तो हम दोनों भी दीदे फाड़ के हँस दियेइतना कहकर कृष्णा तो चुप हो गया पर बाबू लोग हो ऽ हो ऽ करके हँसने लगे। फिर हँसते-हँसते दफ्तर की और लौट गये। इस तरह वह चांदपुर की लड़की मीना भोंपूवाली बन गई, गांव वालों ने ग्रामोफोन पर लगे फूलनुमा माइक को भोंपू बना दिया, और बाजा बजाने वाला रामू भोंपूवाला बन गया। प्राय : रोज ही कृष्णा को यह किस्सा कैटीन में सनाना पड़ता था, पूरे महीने यही किस्सा इधर-उधर चलता रहा। अचानक कृष्णा ने कैंटीन आना छोड़ दिया। लगातार चार दिनों से जब वह कैंटीन नहीं आया तो कैंटीन वाला चितित हो उठा, बाबू लोगों को भी फीका-फीका लगने लगा, पांचवे दिन कैटीन वाले ने एक छोकरा दौड़ा कर उसे बुलवा दिया, कृष्णा के चेहरे पर हँसी नहीं थी, बाबू लोंगों ने भोप-बाजा के किस्से के लिये कितनी मिन्नते की पर वह लम्बूतरा चेहरा लटकाये चुपचाप काम करता रहा आखिर बाबू लोंगों को लगा कि मामला कुछ संगीन है, उसे पास बिठाया, पुचकारा तो वह रो दिया... हमार बापू सादी बनाई दिये साहब । अभी तो हमार महतारी को गुजरे सालभर भी नहीं हुआ और... ठीक तो किया तुम्हारे बाप ने, बेटा रंगरेलियां मनाता तो क्या बाप मुह ताकता, किसी मनचले ने मजाक किया कितनी उमर है तुम्हारे बाप की, दूसरे ने पूछा। होगी कोई पचास-बावन...कृष्णा ने झंपते हुए कहा। बाबू कब चकने वाला था बोला-लो यह भी कोई उमर हुई-पचास-पचपन, मर्द के लिये क्या उमर है। क्या कहते हैं साहिब सर के बाल सारे सफेद हो गये उस पर आधी उमर की. औरत...हमको तो सरम आती हैं। अच्छा !


बिलकुल आधी उमर की है ! पर ये हुआ कैसे ! का बतायें साहिब । उस रोज साम के घर गया, कि बापू एक औरत को साथ ले के घर पहुँचा.. आते ही आवाज दी...ऐ रामू ऐ कृष्णा इधर आव! हम बाहर निकले तो बापू ने कहा-प्रणाम करो, ई तुम्हार नई महतारीमहतारी...हम एक बार सर से पैर तक उसे ताके, फिर बाप के देखे बस बापू के पारा कपाल में चढ़ गया...का देखित रहिन ..हमका क्या पहली बार देखे हो। प्रणाम करो... भाय ने तो झुक के हाथ जोड़ दिये पर हमको बड़ी गुस्सा आई... हम बोले... ई कोने पतुरिया उठा लाये बापू हम ईका कौने महतारी वहतारी कब नाहीं कहेंगेकृष्णा.. बापू ने जोर का थप्पड़ हमें जमाया-जास्ती बकर-बकर करता है... हट...और फिर उस नई औरत से कहा...ई हमार बड़ा बेटा ई वाकी घरवाली... और बहू, ई तुम्हार सासू भइल इनका पांव लागी नाहीं करिहो का। नाहीं भावजी ! ई हमार महतारी नहीं... हम फिर बोले सहिब तो बापू ने लात-घूसे मार-मार के हमका अधमरा कर दिये...ऊ नई औरत भी बढ़-बढ़ के बोली छोकरे ! जबान संभाल के बात कर हम कौने उठाईगिरी के नाहीं आये, ई बुढ़ऊ पूरे तीन हजार रुपये ठन्न...ठन्न गिना के लाया है। हमका कौने ऐसौ-वैसी नाहीं समझों। इतना कह के वह तो ठम-ठम कमरे में जा घुसी तो भाय बापू से बोला...ई उमर सादी बयान की नाहीं है बापू ! ई मकान की दसा तुमको नाहीं दिखी, ई पर तो सौ टका खर्च करने को मन किये और...औरत पर तीन हज्जार भाय कामाथा ठनका बोला बापू...वो दहेजके पांच हजार टका ही दे दो, हम आप छत डलवा लेंगे, पांच हजार... दहेज का पंसा बाप बेटा को देता है, का ऊ हम खरच लिये...तीन हजार टका, तुम्हार महतारी के गिना दिये... बापू रामू के नथुने गुस्से से फड़कने लगे...हम सोचे थे, दो-तीन हजार टका के घर सधरा देंगे, बरसात सर पर है, बाकी के दुकान में लगा देंगे। बेटे को गुस्से से फुफकारते देख कर वाप ने दो हजार उसकी हथेली में धर दिये...अब हम तो सादी बना दिये...अब तो टका लौटा के दे नहीं सकते... तुम इतने से ही काम चलाओ। बाप अपनी नवेली दुल्हन को लेकर कमरे में जा बैठा, बेचारा रामू खिसियाने मुह कमरे में घुस गया। कुछ देर के लिये सब खामोश हो गये। लंच बत्म हुआ तो बाबू लोग दफ्तरों की तरफ बढ़ गये पर कृष्णा वहीं खड़ा रह गया। यू' ही दिन सरका, शाम को देर गये कृष्णा घर लौटा, रास्ते में भाई की दुकान पड़ती थी, उसी के पास जा बैठा . फिर दोनो साथ ही घर को ओर चल पड़े।


अभी आंगन में कदम भी नहीं रखा था कि एक फर्कश स्वर कान से टकराया ये लो, आ गये नवाब जादे । उधर नबाबिन कमरा मा बंद पड़ी है, कौने चौका-चूल्हा की सुध नाहीं। हम कौनो की नौकरानी नाही. जे सबके चौका चूल्हा करे, हम ऊ का सासू भइल, कौने एल-गेल नाहीं... ठन्न-ठन्न तीन हजार टका गिनाइके लाया बुढ़ऊ...रामू ने एक नजर दूसरे कमरे की ओर डाली फिर बोला...तुम चुप्पी ज व माई। हम अब समझाइ देव । कमरे में जाकर उसने घटनो में सिर दिये पत्नी को देखा, वह सिसक रही थी राम ने झुककर उसके कानो में फुसफुसाया...ऐ भोंपूवाली! उठ भूख लगी हैवह चुप रही तो उसने कोने में पड़े बाजे पर रिकार्ड चढ़ा दिया...लाली... लाली-डुलिया में लाली रे दुलहनियां पिया की की पियारी भोली-भाली रे दुलहनियां, मीना हँस दी...तुम रिकाड बजाइके हमें खूब उल्लू बना दिये भोंपूवाले ई कहाँ फंसा दिये। भोंपूवाली। अब तो फंस ही गई, हमारी न तो कृष्णा का ही खयाल करो, बेचारा आंगन में बैठा-बैठा बिसूर रहा है... ओह! पल्लू से आँसू पोंछती मीना बाहर निकली...लल्ला ! तुम काहे को मुह बिसूर के बैठे हो...चलो हाथ-मुह धोओ, हम गरम-गरम रोटी-भाजी बना देत ई, भौजी का लाड पाकर कृष्णा ने छोटे बच्चे की तरह भौजी के आंचल के मुंह छपा लिया...भावजी...ना...ना...तम हमार महतारी... O RTS हाँ...हाँ ऊ तुम्हार महतारी...हाय . हाय । ई जादूगरनी सबको बस मा कर लिये...फिर बिमाता का फर्कश स्वर उभरा इतने में बड़े से दोने को ढके सामने से बापू माता दिखाई दिया, कृष्णा ने आशा से बाप की तरफ देखा, पर वह तो सीधा नवेली के दरवाजे पर जा पहुँचा . तुम काहे माथा गरम करती हो, ई लीटी का पकौड़ा खाव ..ऊ खाना बनाइ कि नाही बला से ..कहकर बाप ने भड़ाक से दरवाजा बँद कर लिया। भोंपूवाली चुपचाप चौके में खटर-पटर करने लगी, रामू और कृष्णा दरवाजे की तरफ ताकने लगे जहाँ से लीटी के पकौड़े खाती तीन हजारी की खिल-खिलाहट छन-छन कर बाहर बिखर रही थी।