वार्ड में कदम रखते ही नीता का ध्यान किसी की हंसी ने खींच लिया। उसने देखा कि माथे और हाथ पर पट्टियां बांधे वह लेटा था और मुस्करा रहा था। उसके चेहरे पर ओज और शौर्य बिखरा था। उसकी बड़ी-बड़ी काली आंखें बहुत भली लग रही थीं। उस तक पहुंचने के लिए नौता को पांच 'बैड' पार करने थे, वह हर जवान को एक-एक पार्सल दे रही थी और उसकी कुशल पूछ रही थी। बढ़ती हुई वह उसके 'बैड' तक पहुंची जहां नीता की सह-अध्यापिका मधु उससे बातें कर रही थी। नीता ने हाथ जोड़ दिए । मुस्कराते युवक ने भी सिर हिला दिया। वह पास पड़ी बैंच पर वह मधु के साथ बैठ गईसहसा मधु ने पूछा- "क्या आप अपना रैक और घायल होने का कारण बताएंगे?" यूवक ने कहा- "मैं कैप्टन प्रकाश राव हूं-राजपूत रेजिमेंट का। भजनामा क्षेत्र मे हम दुश्मन की धज्जियां उड़ा रहे थे कि एक ओर से मशीनगन की गोलियों ने हमारे जवानों के कदम रोक दिए। कोई अन्य उपाय न देख मैं उस खाई में कूद पड़ा जिसमें दुश्मन मशीनगन छिपाए बैठा था। एक हथगोले से उसे ठिकाने लगा कर मैंने मशीनगन कब्जे में कर ली, पर एक दुश्मन ठीक मेरी बाई भोर हथगोला फेंक कर भाग गया जिसके फटने से मेरी बाई बांह झल गई। माथे पर भी चोट आई। शायद दाहिना हाप भी खराब हो जो पट्टी खुलने पर भी मालूम होगा" नीता उसके गिरते-उठते भावों को परख रही थी जिनमें शौर्य की ज्योति जल रही थी।
वह सोचने लगी कितना बहादुर है देश का जवान, घायल होने पर भी दुश्मन को तोड़ देने की उत्कठा है उसमें । पिछले दस-बारह दिन से हर दूसरे-तीसरे दिन समाज-सेविकाओं का दल सैनिक अस्पताल आता रहा है। नीता भी समाज-सेविका है। वह उपहारों के पैकेट लिए हर जवान से कहती है-“यह हमारी सोसायटी की ओर से दी गई छोटी सी भेंट है, यह हमारे मोहल्ले की तुच्छ भेंट है, यह हमारे विद्यालय के नन्हे विद्यारियों का उपहार हैउसके उपहारों की गिनती सुनकर प्रकाश खिलखिलादिया। आप हंसते क्यों हैं ? नीता ने पूछा। बात तो कुछ नहीं, पर हर बार आप पराये उपहार देने आती हैं इनमें आपका कौन सा उपहार है ? क्या इनमें मेरा हाथ नहीं है ? नीता बोलीहोगा और जरूर होगा, पर कभी कुछ ऐसा भी तो दीजिए जो सिर्फ आपका हो जिसे मैं बाद के तौर पर रख सकूँ । हां, हम लोगों के पास यादों के अलावा है ही क्या, बती आवाज में प्रकाश बोला। नीता स्वयं भावुक हो उठी और बोली-मैं दे भी क्या सकती हं? मेरे पास है ही क्या ? छोटी उम्र में पिताजी का साया सिर से उठ गया। एक भाई और एक बहन को पढ़ाते-पढ़ाते जीवन का बड़ा भाग गुजर गया।
सिवाय गरीबी के मेरे पास है ही क्या? अरे, आप तो बहुत भावुक निकली ! मेरा मतलब यह नहीं था। कोई चाकलेट या विस्कट ही थमा कर कह दीजिए. लीजिए यह मेरा अपना है. प्रकाश गंभीर होते-होते फिर विनोद पर उतर आयायह बात है ? अच्छा, कोशिश करूंगी। दूसरे दिन नीता ने देखा कि प्रकाश की 'बैड' के पास एक बूढ़ी घुटनों पर झुकी रो रही है। प्रकाश भी दुखी है। क्या बात है? पास जाकर नीता ने पूछाप्रकाश हंसा माँ कहती है मैंने कितने सपने संजोए थे कि तेरे लिए सुदर सी बहू लाऊंगी। भला मुझ अपग से कौन शादीकरेगा, प्रकाश कुछ गंभीर होकर बोला। मांजी ! आपको तो गर्व होना चाहिए और खुशी भी कि अपना फर्ज पूरा करें यह आपके पास लौट आए है। हां, बेटी! पर उनको आखिरी सांसों में दिए वचन को कैसे निभा पाऊंगी मैं ? किसकी बात कर रही हैं आप? प्रकाश के पिता देश की आजादी की लड़ाई में जूझे थे। मृत्युशैया पर मूझ से सात पूश्तों तक देश को सनिक देने का वचन लिया था, पर अब...अब... कह कर वृद्धा फफक पड़ी। नीता सोच रही थी कि वृद्धा वीर हैं, तभी तो प्रकाश भी बौर है। वीरों के घर में वीर ही पैदा होते हैं। वातावरण गंभीर हो गया। काफी देर की चुप्पी के बाद प्रकाश ने चुटकी ली-हां तो, लाइए अपना उपहार। हैं ! नीता जैसे सोते से चौंकी। मुझे तो ख्याल भी नहीं रहा।
प्रकाश गंभीर हो गया। आपने लाने का वादा किया था ? अरे! आप नाराज हो गए। अच्छा कल जरूर ला दूंगी। वादा है ? प्रकाश ने अपना पट्टी बंधा हाथ आगे बढ़ा दिया। वादा ! नीता ने अपनी नाजुक हथेली उसके हाथ में रख दी। घर आकर नीता सारे दिन सोचती रही कि वह क्या दे प्रकाश को। खूबसूरत सूट या घड़ी ?-ये चीजें तो सारी दुनिया दे रही है, वह क्या दे ? रात सरकती गई। नीता सो न सकी उसके चारों ओर प्रकाश और उसका ओज से चमकता घायल चेहरा तैरता रहाभोर की पहली किरण ने उसे सहलाया तो वह मुस्करा दी जैसे उपहार देने के लिए उसे कुछ मिल गया हो फिर उसने एक छोटी सी दुकान से कुछ खरीदाउसे सुंदर लिफाफे में रखा और अस्पताल की ओर चल पड़ीजामुनी साड़ी-ब्लाउज में उसका गोरा रग खब खिल रहा था। वार्ड में पहुंचते ही प्रकाश ने पूछा-देखू, क्या लाई हैं आप? मैं जो भी दूंगी वादा कीजिए आप उसे मंजूर कर लेंगे, नीता बोली। वादा करता हूं, प्रकाश का पट्टी बंधा हाथ आज फिर उसकी ओर पठ गया। नीता ने अपने हाथों से जगमगाती सुर्ख डिब्बी प्रकाश के हाथों में थमा दीइसमें क्या है ? शिकिकी खोलिए। डिब्बी खोलकर प्रकाश ने आश्चर्य से कहा ..नीता ! यह उपहार...मैं ..मैं कैसे ले सकता हूं। देखो मेरा उपहार ठहरा मत देना। भरतीय जवान वचन नहीं हारा करते। पर, प्रकाश के होंठ थरथरा उठे। नीता ने प्रकाश का दाहिना हाथ पकड़ कर डिब्बी से थोड़ा सा सिंदूर निकाला और उसे अपनी मांग में भर लिया।